जिस दिन लिया था जन्म, उसी दिन देश के लिए दी शहादत – कारगिल के शहीद राम समुझ यादव की कहानी
"जो देश के लिए शहीद होते हैं, वो कभी मरते नहीं, उनका नाम इतिहास के पन्नों में अमर हो जाता है।"
कारगिल युद्ध, 1999 – यह वह समय था जब भारत माता की रक्षा के लिए हमारे वीर जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन दुश्मनों को एक इंच ज़मीन भी नहीं लेने दी। इन्हीं वीरों में से एक थे शहीद राम समुझ यादव – उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के नत्थूपुर गांव के सपूत, जिन्होंने 22 साल की उम्र में अपने प्राण मातृभूमि पर न्योछावर कर दिए।
30 अगस्त 1977 को सगड़ी तहसील के नत्थूपुर गांव में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे राम समुझ यादव, तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। बचपन से ही उनके दिल में देशभक्ति की भावना थी और उनका सपना था भारतीय सेना में शामिल होकर देश सेवा करना।
वर्ष 1997 में वाराणसी में भर्ती रैली के दौरान उनका सपना पूरा हुआ और उन्हें 13 कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती किया गया। पहली पोस्टिंग मिली – दुनिया की सबसे ऊंची और सबसे कठिन सैन्य पोस्टिंग – सियाचिन ग्लेशियर पर।
सियाचिन से तीन महीने बाद जब राम समुझ छुट्टी पर घर आने वाले थे, तभी कारगिल युद्ध छिड़ गया। छुट्टी रद्द हुई और उन्हें तुरंत कारगिल के मोर्चे पर भेज दिया गया। 56/85 नामक खतरनाक पहाड़ी पर पाकिस्तानी घुसपैठियों से कब्जा छुड़ाने की जिम्मेदारी उनकी टुकड़ी को सौंपी गई।
इस टुकड़ी में एक कमांडर और सात जवान थे। तेज बुखार के बावजूद राम समुझ ने हौसला नहीं खोया और टीम के साथ आधी रात को चढ़ाई शुरू की। यह चढ़ाई आसान नहीं थी — 56 फीट तक तो फिर भी चलकर जाया जा सकता था, लेकिन उसके बाद के 85 फीट सिर्फ रस्सियों के सहारे चढ़े जा सकते थे।
सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर हमला हुआ, और राम समुझ ने अपने साथियों के साथ मिलकर दुश्मन के 21 सैनिकों को मार गिराया। हालांकि, इस लड़ाई में भारत के आठ में से सात जवान शहीद हो गए, जिनमें राम समुझ भी थे।
शहादत की तारीख – जन्मदिन पर वीरगति
कितनी विडंबना है कि जिस दिन वे इस दुनिया में आए थे –30 अगस्त, उसी दिन वर्ष 1999 में वे देश के लिए शहीद हो गए। यह महज संयोग नहीं, बल्कि उनकी किस्मत में भारत मां के लिए मर मिटना लिखा था।
शहीद राम समुझ की शहादत को कभी भुलाया नहीं गया। उनके गांव नत्थूपुर में राज्य सरकार द्वारा ‘शहीद पार्क’ का निर्माण कराया गया, जहां उनकी भव्य प्रतिमा स्थापित है। हर साल 30 अगस्त को 'शहीद मेला' का आयोजन होता है, जिसमें आसपास के हजारों लोग शामिल होते हैं और इस वीर सपूत को श्रद्धांजलि देते हैं।
उनके माता-पिता – राजनाथ यादव और प्रतापी देवी, और भाई प्रमोद यादव आज भी अपने बेटे की शहादत पर गर्व करते हैं। वे कहते हैं –"अगर फिर मौका मिला, तो अपने परिवार के और बच्चों को भी सेना में भेजेंगे।"
शहीद राम समुझ यादव जैसे वीरों की कहानियां हमें न सिर्फ प्रेरित करती हैं, बल्कि यह भी याद दिलाती हैं कि हमारा आज उनके कल के बलिदान का परिणाम है। उनका बलिदान हमेशा अमर रहेगा और अगली पीढ़ियों को सिखाएगा कि देश सबसे ऊपर होता है।
यह लेख शहीद राम समुझ यादव की शहादत को समर्पित है। यदि आपके पास उनसे जुड़ी कोई और जानकारी या स्मृति है, तो कृपया हमें बताएं।



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